दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में असोसिएट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत डॉ सुधा उपाध्याय हिंदी की आज की लेखिकाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। रचना में निहित संदर्भों को समेटते हुए उसकी व्यापकता में देखना सुधा उपाध्याय की सबसे बड़ी खासियत है। इसलिए अविधा उनकी सबसे बड़ी ताक़त है। रचना में मुखरता और प्रतिबद्धता कि वजह से वो साहित्य और आलोचना जगत में बिलकुल अलग दिखती हैं। रचनाधर्मिता उनकी जीवन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। कविता और कहानी में जिस तरह वो समाज, इतिहास और राजनीति के सूक्ष्म बिंदुओं को पकड़ती हैं, आलोचना में कृति के समाजशास्त्र, सौंदर्य बोध और उसके तलीय स्वर को पकड़ने का साहस करती हैं। ईमानदारी उनकी रचनाओं में तो दिखती ही है जीवन में भी भरपूर नज़र आती है। पेशे से अध्यापक, दिल से शोधकर्ता और दिमाग से समीक्षक, कुल मिलाकर साहित्य को समग्रता में जीती हैं। एक शिक्षक होने के नाते समाज के हर उस शख्स के लिए वो आवाज़ उठाती हैं जो शिक्षा से वंचित रह जा रहा है। कविता, कहानी, लेख और आलोचना में इसकी झलक साफ नज़र भी आती है। बेबाक टिप्पणियों के लिए सुधा उपाध्याय जानी जाती हैं। शायद यही वजह है कि वो किसी अनर्गल विमर्श में न पड़कर एक स्वस्थ संवाद कायम करने में विश्वास रखती हैं।