निर्देशक – नितेश तिवारी
मुख्य कलाकार – आमिर खान, साक्षी तंवर, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, जायरा वसीम, सुहानी भटनागर, अपारशक्ति खुर्राना इत्यादि।
समयः 2 घंटे 41 मिनट
वर्ष: 23 दिसम्बर,2016
रेटिंग: 4.5
“दंगल” फिल्म की कहानी :
‘दंगल’ हरियाणा के बलाली गांव के पहलवान महावीर सिंह फोगाट की कहानी है उनका सपना है कि वो अपने देश के लिए पहलवानी में स्वर्ण पदक जीत कर लाये लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाता। महावीर ने सोचा कि अपने बेटों के द्वारा वह अपने सपने को पूरा करेगा, लेकिन चार लड़कियां के होने पर वह निराश हो जाता है और उसके सारे सपने चूर चूर हो जाते है।वह सोचता है कि लड़कियों का जन्म तो चूल्हे-चैके और झाडूू-पोछे के लिए होता है लेकिन एक दिन उसकी बेटियां गीता और बबीता गांव के दो लड़कों की पिटाई करती है और यही से महावीर को महसूस होता है- म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?
छोटे से गांव में लडकियों को लडकों से कम ही माना जाता है और जिसके घर में सिर्फ बेटियां ही पैदा होती है लोग उसे तुच्छ नजरों से देखते हैं।अगर ऐसे गांव में लडकियां के बाल काट दिये जाये तो वे चर्चा का विषय बन जाती है। वही पर महावीर सिंह अपनी बेटियों को पहलवानी सिखाने का फैसला लेते है और उनको चैम्पियन बना कर ही दम लेते है। बाद में ये लडकियां मां-बाप के साथ-साथ देश का भी नाम वैश्विकपटल पर दर्ज कराती हैे लेकिन हरियाणा के उस छोटे से गांव से लेकर वैश्विकपटल पर अपनी बेटियों की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए महावीर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
दंगल फिल्म बनाने की प्रेरणा :
इस फिल्म के निर्देशक नितेश तिवारी को फिल्म बनाने की प्रेरणा एक अखबार में महावीर सिंह पर लिखे गए लेख से मिलती है। लेख से प्रभावित होकर नितेश जी दंगल फिल्म का निर्माण करते है जो सभी दर्शकों को काफी प्रभावित करती है। इस फिल्म के माध्यम से दर्शको को यह बताने की कोशिश की जाती है कि कुछ पाने की चाह के आगे साधनहीन होने की बात बहुत छोटी साबित होती है।
फिल्म का समीक्षात्मक अध्ययन :
लगभग 75 करोड की लागत से बनने वाली दंगल फिल्म न केवल खेल से सम्बन्धित है अपितु लड़कियों के प्रति समाज की सोच, रुढ़िवादी परंपराएं, एक व्यक्ति का सपना और जुनून, लड़के की चाह, अखाड़े और अखाड़े से बाहर के दांवपेंच, देश के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना, चैम्पियन बनने के लिए जरूरी अनुशासन और समर्पण , जैसे सभी विषयों को इसके द्वारा दिखाने की कोशिश की गई है ।
फिल्म यह भी दर्शाती है कि फोगाट को दो मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा -एक तो उसे अपना सपना पूरा करना है और दूसरा उस समाज से लड़ना है जो लड़कियों को कम आंकता है। उसकी तथा उसकी बेटियों की हंसी उड़ाई जाती है, लेकिन इन सभी का उस पर कोई असर नही होता है।
फिल्म इंटरवल तक इतनी तेज गति से भागती है कि दर्शकों की सांसें थम जाती है। फिल्म का पहला दृश्य ही इतना लाजवाब है कि तालियों और सीटियों का खाता फौरन खुल जाता है। इसके बाद एक से बढ़कर एक दृश्य की निर्देशक नितेश तिवारी झड़ी लगा देते हैं। चाहे वो लड़के पैदा करने के टोटके हो, बच्चियों को पहलवानी का प्रशिक्षण देने के दृश्य हों, पिता की सख्ती हो, छोरियों के छोरों से कुश्ती लड़ने के दृश्य हों, सभी इतनी अच्छे तरीके से गूंथे गए हैं कि दर्शक बहाव में बहते चले जाते हैं। कहानी को परत दर परत प्रस्तुत किया गया है और इंटरवल के समय सवाल उठता है कि निर्देशक ने इतना कुछ दिखा दिया है कि अब उसके पास दिखाने के लिए बचा क्या है?
फिल्म में महावीर सिंह फोगाट अपनी बेटी गीता को तभी शाबाश कहता है जब वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतती है। ऐसी ही शाबाशी आमिर खान और नितेश तिवारी के लिए फिल्म देखने के बाद अपने आप मुंह से निकलती है।
फिल्म में दर्शाया गया है कि किस तरह बडे शहरों की चमक दमक खिलाडियों का ध्यान भंग कर सकती है-
फिल्म में यह भी दिखाने की कोशिश की गई है कि एक छोटे से गांव से निकल कर बड़े शहर की चमक-दमक किस तरह खिलाड़ी का ध्यान भंग कर सकती है। यहां पर बाप और बेटी के द्वंद्व को भी दिखाया गया है। गीता का नया कोच महावीर के प्रशिक्षण को खारिज कर देता है और गीता उसकी बातों में आ जाती है। पिता-पुत्री के बीच कुश्ती का मैच फिल्म का एक शिखर बिंदु है जिसमें वे दोनों शारीरिक रूप से तो कुश्ती लड़ते हैं लेकिन असली लड़ाई उनके दिमाग के अंदर चल रही होती है।
फिल्म में खेल (कुश्ती) के सभी दृश्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है -आमतौर पर स्पोर्ट्स फिल्में खेल दिखाए जाने वाले दृश्यों में मार खा जाती हैं। नकलीपन हावी हो जाता है, लेकिन ‘दंगल’ में दिखाए गए कुश्ती के मैच इतने जीवंत हैं कि असल और नकल में भेद करना मुश्किल हो जाता है। फातिमा सना शेख ने युवा गीता का किरदार निभाया है और उन्होंने इतनी सफाई से कुश्ती वाले दृश्य किए हैं कि वे सचमुच की कुश्ती खिलाड़ी लगी हैं।
इंटरवल के बाद ‘दंगल’ स्पोर्ट्स फिल्म बन जाती है। थोड़ा ग्राफ नीचे आता है, क्योंकि स्पोर्ट्स फिल्में ज्यादातर एक जैसी ही लगने लगती हैं, लेकिन जल्दी ही स्थिति संभल जाती है। जिन लोगों को खेल में रूचि नही है या कुश्ती के बारे में कोई जानकारी नही है उनको भी फिल्म का यह भाग बहुत पसंद आता है।यह फिल्म कुश्ती के बारे में भी विस्तृत ज्ञान सभी को देती है। गीता के राष्ट्रीय स्तर से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के सफर को यहां पर दर्शाया गया है।इन कुश्ती दृश्यों को इतने रोचक तरीके से फिल्माया गया है कि सिनेमाहाल स्टेडियम लगने लगता है और तनाव में आकर दर्शक नाखून चबाने लगते हैं। राष्ट्रमंडल खेल में जब गीता स्वर्ण पदक जीतती है और तिरंगा को ऊपर जाते देख जो गर्व का भाव सभी में पैदा होता है उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। जब ‘जन-गण-मन’ बजने लगता है तो सिनेमाहाल में मौजूद सारे दर्शकों में राष्ट्रप्रेम की भावना ऐसे हिलोरे लेती हैं कि वह स्वतः ही सम्मान में खड़ा हो जाता है।
निर्देशक के रूप में नितेश तिवारी की भूमिका :
निर्देशक के रूप में नितेश तिवारी की पूरी फिल्म पर पकड़ है। फिल्म के प्रथम भाग में उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया है। हंसते-हंसाते उन्होंने गंभीर बातें कह डाली हैं। फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं जो आपको ठहाका लगाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करते है विशेष रूप से महावीर के भतीजे का जो किरदार है वो अद्भुत है। उसके नजरिये से ही ‘दंगल’ दिखाई गई है और उसका पाश्र्वस्वर कमाल का है। फिल्म के दृश्यों को शूट करना भले ही आसान हो लेकिन उसकी भावात्मकता को दर्शकों तक पहुंचा पाने में नितेश जी सौ फीसदी कामयाब रहे हैं। वहीं कुश्ती के दृश्यों को इतने बेहतरीन तरीकों से प्रस्तुत किया गया जिनको देखकर दर्शक बार बार ताली बजाते है।फिल्म की लंबाई से शिकायत हो सकती है, लेकिन इस तरह की फिल्मों को देखने के लिए धैर्य की आवश्यकता है।
दंगल में प्रयुक्त संगीत :
फिल्म के सभी गीत फिल्म की कहानी के साथ साथ बढ़ते हैं। ये कहानी के साथ इस तरह चलते हैं कि पता ही नहीं चलता कि कब गाना शुरू हुआ और कब खत्म। गाने फिल्म देखते समय अच्छे लगते हैं क्योंकि वे कहानी को आगे बढ़ाने में सहायक हैं और किरदारों की मनोदशा को भी दर्शाते हैं। गानों में कुश्ती वाले दृश्यों को बहुत ही सुन्दर ढंग से दर्शाया गया है। सभी गाने कहानी का हिस्सा है। हानिकारक बाबू हो या धाकड़ है धाकड है इत्यादि।
दंगल फिल्म सभी रूढीवादी परंपराओं का खंडन करती है :
आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ जितनी प्रेरणादायक है, उतनी ही मनोरंजन से भरपूर है। महावीर फोगाट (आमिर) हरियाणा का पहलवान है जब उनका अपना सपना पूरा नही होता है तब वह उसको बेटे के द्वारा पूरा करने की सोचते है। लेकिन जब उनकी यह उम्मीद भी खत्म होती दिखती है तो वह अपनी बेटियों गीता (फातिमा) और बबीता (सान्या) दोनों को कुश्ती की शिक्षा देते है ।‘दंगल’ की कहानी उन सभी रूढीवादी परंपराओं का खंडन करती है जो यह कहते हैं कि पुरुषों के खेल में महिलाओं की हिस्सेदारी नहीं हो सकती है।
फिल्म की कहानी दर्शकों को काफी प्रभावित करती है :
कहानी के स्तर पर फिल्म में ज्यादा कुछ नया या अनोखा नहीं है क्योंकि कामनवेल्थ गेम्स में गीता और बबीता की जीत हम सभी की आम जानकारी में है। यह फिल्म पर्दे पर महावीर जी के जीवन की सभी मुश्किलों को दिखाने में सफल होती है। फिल्म में एक जिद्दी पिता जो सभी बाधाओं के होने के बावजूद भी अपनी बेटियों को पेशेवर खिलाडी बनाता है जो दर्शको को काफी प्रभावित करता है यही नही फिल्म में और भी दृश्य है जो सभी को लुभाते है। फिल्म जहां फोगाट बहनों के ऐतिहासिक जीत को दिखाती है, वहीं महिलाओं और लड़कियों को कुश्ती के लिए प्रेरित भी करती है।
फिल्म में हर किरदार ने अपने मजबूत अभिनय का परिचय दिया है :
‘दंगल’ में हर एक किरदार ने बेहतरीन काम किया है। अभिनय के मामले में फिल्म जबरदस्त है। कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने हर भूमिका के लिए उपयुक्त कलाकार का चुनाव किया है। आमिर खान का यह अभिनय उनकी पिछली रिलीज फिल्मों से काफी अलग है और आपको भीतर तक छू जाता है। आमिर खान तो अपने किरदार में पूरी तरह डूब गए। वजन कम ज्यादा उन्होंने इस रोल के लिए किया है, लेकिन केवल इसके लिए ही आमिर खान प्रशंसा के पात्र नहीं है ये तो कई लोग कर सकते हैं। उनका अभिनय भी प्रशंसा के योग्य है। पहलवानों की शारीरिक बनावट और हरियाणवी लहजे को जिस सूक्ष्मता के साथ पकड़ा है वो काबिल-ए-तारीफ है। अपने किरदार को उन्होंने धीर-गंभीर रूप में प्रस्तुत किया हैं। उन्होंने नए कलाकारों पर हावी होने के बजाय उन्हें भी उभरने का अवसर दिया है। फिल्म में सभी किरदारों ने अपने अपने अभिनय के अनुसार वेशभूषा को भी धारण किया है।
जायरा वसीम ने बाल गीता का किरदार निभाया है और उन्हें देख लगता ही नहीं कि यह लड़की अभिनय कर रही है। सुहानी भटनागर ने बाल बबीता बन उनका साथ खूब निभाया है। युवा गीता के रूप में फातिमा सना शेख और युवा बबीता के रूप में सान्या मल्होत्रा अपना प्रभाव छोड़ती हैं। खासतौर पर फातिमा का अभिनय प्रशंसनीय है। महावीर के भतीजे के रूप में अपारशक्ति खुराना ने भी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया है। फिल्म में साक्षी तंवर के अभिनय की कुछ कमी दर्शकों लगती है लेकिन साक्षी ने भी अपनी मौजूदगी का अहसास बीच बीच में कराया हैं जिससे दर्शक काफी प्रभावित होते हैं।
फिल्म की पटकथा बहुत जबरदस्त है :
‘दंगल’ की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे बेहतरीन ढंग से लिखा गया है। फिल्म की पटकथा बहुत जबरदस्त है। जिस तरह से एक के बाद एक दृश्य सभी के सामने आ रहे थे, वो दर्शकों को पूरे समय बांधे हुए थे। महावीर के विषय में सब कुछ पता होते हुए भी दर्शक सम्पूर्ण फिल्म का आनन्द अन्त तक लेते है।इंटरवल के बाद जिस प्रकार से कहानी आगे चलती है उस समय सभी अपनी अपनी सीट को पकडकर बैठ जाते है क्योंकि उनको ऐसा लगता है कि वो स्टेडियम के अन्दर बैठे है और सामने मैच चल रहा है। निर्देशक नितेश तिवारी, पीयूष गुप्ता, श्रेया जैन और निखिल मल्होत्रा इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं। पर्दे पर हमें क्षेत्रीय पुट के साथ हंसी ठिठोली और बाप-बेटियों के बीच कई दिल को छू लेने वाली भावनाओं और दृश्यों को जीने का मौका मिलता है। हालांकि हरियाणी बोली के कारण कई अवसरों पर शब्दों को समझने में दिक्कत होती है, लेकिन बेटों की चाहत को लेकर हमारी सोच, खेल के प्रति प्रशासन का दयनीय बर्ताव इत्यादि भावों को बहुत ही सरल ढंग से इसमें दिखाया गया हैं।
निष्कर्ष :
इस प्रकार हम कह सकते है कि दंगल फिल्म अपने समय की सुपरहिट फिल्म थी। यह फिल्म पूरे परिवार के साथ बैठकर देखी जा सकती है। बाॅलीवुड में अब तक खेल पर कई बायोपिक फिल्में बन चुकी है लेकिन इसने कुछ ऐसा कर दिखाया जो अन्य फिल्मों से कुछ अलग है।फिल्म में कही पर कुछ नाममात्र कमियां है लेकिन फिल्म का शानदार निर्देशन , बेहतरीन कलाकारी, जबरदस्त पहलवानी के दृश्य ये सभी इन कमियों को छिपा देते है।
Reviewed by : ममता – सहायक प्रोफेसर (संस्कृत विभाग) जानकी देवी मेमोरियल महाविद्यालय